राष्ट्रीय सदभावना यात्रा, उत्तराखंड

राष्ट्रीय सद्भावना यात्रा 2022 उत्तराखंड में भाईचारे, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय चेतना और लोकतांत्रिक संवाद को लेकर 8 मई से 20 जून तक चली। 4500 किमी से अधिक की इस यात्रा में 200 से अधिक सभाएं हुईं और 10,000 लोगों से संवाद हुआ। इसने सामाजिक विघटन, पर्यावरणीय संकट, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर गहन विमर्श प्रस्तुत किया।

यात्रा का सन्दर्भ एवं उद्देश्य

समाज में बढ़ते हुए भेदभाव, द्वेष, घृणा, यहां तक कि परस्पर अमानवीय व्यवहार का सामना करने के लिए कुछ सामाजिक विचारकों एवं जन कार्यकर्ताओं द्वारा देश की आजादी के 75वें साल के मौके पर एक राष्ट्रीय सद्भावना यात्रा की परिकल्पना की गई। इसकी शुरुआत देवभूमि उत्तराखंड से मई महीने में की गई।

उत्तराखंड में ऐतिहासिक कुली बेगार प्रथा के 100वें  वर्ष के मौके पर उत्तराखंड के विभिन्न सामाजिक सस्थानों, लोकतांत्रिक संगठनों, जन आंदोलन समूहों, नागरिक सगठनों और बौद्धिक संस्थाओं द्वारा एक साथ जुड़ कर इस प्रदेश व्यापी यात्रा का आयोजन किया गया।

यात्रा के संचालन एवं प्रबंधन सम्बंधी निर्णयों के लिए एक प्रदेश स्तरीय कमेटी का गठन किया गया। विभिन्न संगठनों, लोक समूहों एवं सामाजिक संस्थानों ने यात्रा संबंधी जिम्मेदारियां ली।

सात सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पूरी यात्रा में शामिल रहने का निर्णय लिया । यह सात हैं  सर्वश्री इस्लाम हुसैन, भुवन पाठक, बसंती बहन, साहिब सिंह सजवान, गोपाल राम, सुन्दर बरोलिया, एवं प्रयाग भट्ट एवं  बासंती बहन। इनके अलावा, हर पड़ाव पर बहुत सारे साथी एक से सात दिन तक यात्रा के साथ जुड़े।

यह यात्रा उत्तराखंड की जनता के साथ पर्यावरणीय, लोकतांत्रिक, सामाजिक सौहार्द्र, आजीविका, एवं पलायन जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर लोक संवाद स्थापित करने की कोशिश है। यात्रा के दौरान विगत 100 सालों के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक एवं लोकपक्षीय राजनीति के स्थानीय नायकों के जीवन एवं उनके योगदान को भावी पीढ़ी के साथ साझा करने का प्रयास किया गया।

स्थानीय विकास एवं समाज सुधार के उत्तम प्रयासों को श्रद्धा पूर्वक याद किया गया।  साथ ही साथ, युवाओं की आकांक्षाओं एवं शंकाओं के बारे में उनसे संवाद किया गया। अंतरराष्ट्रीय, देशीय, एवं स्थानीय समस्याओं के कारणों एवं परस्पर संबंधों के बारे में समझ बढ़ाई गई।

सद्भावना यात्रा 8 मई से उत्तराखंड के हल्द्वानी नगर से आरंभ हुई। नगरों, कस्बों, एवं गांवों में पैदल तथा इनके बीच बजाज टेम्पो ट्रैवलर मिनीबस द्वारा यह यात्रा कुल चालीस दिन में यह पूरे प्रदेश के हर कोने को छुई तथा पांच दिन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में अलग अलग स्थानों पर पहुंची | इस यात्रा का समापन समारोह देहरादून में 20 -21 जून 2022 को हुआ जिसमे राज्य भर से लगभग १०० सामाजिक कार्यकर्ता जुड़े|

यात्रा के स्थानों की सूची

राष्ट्रीय सद्भावना यात्रा 2022 -उत्तराखंड हल्द्वानी से 8 मई, 2022 सुरू होकर 45 दिनों में, 4500 किलोमीटर से अधिक यात्रा, 200 से अधिक सद्भावना सभाओं एव कार्यक्र्मों में लगभग 10,000 लोगों ने भाग लिया एवं उनसे संवाद किया गया।

क्रम यात्रा स्थल क्रम यात्रा स्थल क्रम यात्रा स्थल
1 हल्द्वानी 28 चौरा 55 बूढा केदार
2 दिनेशपुर 29 कपकोट भराडी 56 विनक खाल
3 रामनगर 30 बागेश्वर 57 उत्तरकाशी
4 नैनीताल 31 कौसानी अनाशक्ति आश्रम 58 टिहरी बांध क्षेत्र
5 मल्ला रामगढ़ 32 कौसानी लक्ष्मी आश्रम 59 नई टिहरी
6 तल्ला रामगढ़ 33 चनौदा 60 चम्बा
7 नथुवाखान 34 अल्मोड़ा 61 जौल गांव
8 छतोला 35 कठपुडिया 62 खाड़ी
9 सतखोल 36 द्वारसों 63 गैड गांव जौनपूर
10 मुक्तेश्वर 37 मजखली 64 गरखेत
11 भटेलिया बाजार 38 रानीखेत 65 नौगांव
12 जैंती 39 द्वाराहाट 66 चकराता
13 कांडे गांव 40 गैरसैंण 67 कालसी
14 दाड्मी गांव 41 नांगनुलाखाल 68 विकासनगर
15 दन्या लक्ष्मी आश्रम 42 चिंतोली 69 रामपुर
16 दन्या बाजार 43 खंडुआ 70 कोटद्वार
17 पिथौरागढ़ 44 देघाट 71 लैंसडोन
18 हुडेती गांव 45 सल्ट खुमाड़ 72 सतपुली
19 अस्कोट 46 देवालय सल्ट 73 पौखाल
20 जौलजीवी 47 थलीसेंण 74 वीसी (द्वावाटीखाल)
21 मुन्स्यारी 48 पौडी गढ़वाल 75 विनक
22 नाचनी 49 श्रीनगर 76 अठूरवाला
23 मुवानी पीपलतड 50 सिल्यारा आश्रम (बालगंगा घाटी) 77 कोटी
24 बोगाड़ नाघर आश्रम 51 बेलेसवर धाम 78 डोईवाला
25 हिमदर्शन कुटी 52 लस्याल गांव 79 दूधली
26 गौंखुरी 53 विनकखाल 80 देहरादून
(
यात्रा समापन)
27 रीमा 54 खवाडा गांव

 यात्रा की योजना-प्रेरणा के लिए राजीव गांधी फाउंडेशन, नई दिल्ली का आभारजिन जिन साथियों ने आवास, भोजन व बैठकों का आयोजन किया, उनको धन्यवाद

वैचारिक रूप से यात्रा की योजना बनाने में सहायता के लिए पद्मश्री इतिहासकार डॉ शेखर पाठक, राजीव लोचन साह, पीसी तिवारी, सुरेश भाई, डॉक्टर रमेश पंत, ललित फर्स्वाण, हरीश ऐठानी, दर्शना जोशी, सुंदर सिंह मेहरा, लक्ष्मण आर्य व राजीव गांधी फाउंडेशन के विजय महाजन व वरिष्ठ सद्भावना  फेलो विजय प्रताप का महत्वपूर्ण योगदान रहा

यात्रा दल का नेतृत्व उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष इस्लाम हुसैन, रीता इस्लाम, गोपाल भाई, सर्वोदय कार्यकर्ता साहब सिंह सजवान, सुंदर सिंह बरोलिया, विजय महाजन, प्रो सोमनाथ घोष, परमानंद भट्ट, जीत सिंह सनवाल, लक्ष्मी सनवाल, प्रयाग भट्ट, रजनीश बिष्ट, रेवा बिष्ट, हिदायत आजमी, मुरारी गोस्वामी, दिनेश लाल, नरेंद्र कुमार,  प्रेम बहुखंडी, पीसी तिवारी, किरण आर्य, अमीनुल रहमान, प्रभात उप्रेती, दिनेश कुंजवाल, ललित फर्स्वाण, हरीश ऐठानी, डॉक्टर रमेश पंत, सुंदर सिंह मेहरा आदि शामिल रहे

जिन प्रमुख साथियों ने यात्रा पड़ावों पर सहयोग किया उनमें सर्व श्री डॉक्टर अजय पुंडीर, नैन सिंह डगवाल,  रूपेश कुमार, प्रभात ध्यानी, मनमोहन अग्रवाल, राजीव लोचन साह, शेखर पाठक, अनिरुद्ध जडेजा, स्वाति मवाली, रमा बिष्ट, बचे सिंह बिष्ट, दिनेश कुंजवाल, अनिला पंत, चंद्रा पंत, महेश पुनेठा, महेंद्र रावत, भगवान रावत, राजेश उप्रेती, रेनू ठाकुर, जगत मतोलिया, नरेश द्विवेदी, अनिल कार्ले, कमलदीप रावत

 सदभावना यात्रा रिपोर्ट

सदभावना भाईचारा के संदेश के साथ राष्ट्रीय सदभावना यात्रा 8 मई 2022 को हल्द्वानी से प्रारंभ हुई| 8 मई कुंवर प्रसून जी की जयंती होती हैहल्द्वानी से शुरू होकर 20 जून 2022 को यात्रा का समापन देहरादून में हुआ, इस बीच यात्रा में लगभग 4500 किलोमीटर की सड़कें नापी 40 राते उत्तराखंड के अलग-अलग स्थानों पर बिताई, लगभग 200 से अधिक बैठके, नुक्कड़ सभाएं, संस्कृतिक रैलियों, जनसभाओं द्वारा लोगों से संवाद स्थापित करने का प्रयास किया गयायात्रा की शुरुआत संदेश यात्रा के तौर पर हुई, लेकिन धीरे-धीरे यह यात्रा शोध व अध्ययन यात्रा में बदल गई, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए हमारे सामने उत्तराखंडी जनजीवन के नए अध्याय खुलते चले गए

कुली बेगार प्रथा के विरुद्ध आंदोलन के 100 वर्ष पूरे होने व आजादी के 75वें साल में अपने लोकनायकों को हम याद करते रहे पिछले 100 सालों में पहले राष्ट्रीय आंदोलन फिर आजाद भारत के निर्माण में जिन लोकनायकओ ने अपना जीवन खपा दिया उनके कार्यक्षेत्र व जन्मभूमि से भी यह यात्रा गुजरी, कुली बेगार आंदोलन की भूमि बागेश्वर जहाँ  गांधी जी का आना एक महत्वपूर्ण घटना साबित हुई| उनके आने के बाद राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन तथा रचनात्मक आंदोलन व कार्यों की निरंतरता आज भी उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में दिखाई देती है,

1970-80 के दशक तक विभिन्न सामाजिक आर्थिक व सांस्कृतिक आंदोलनों तथा कामों में अग्रणीय दिखाई देने वाला गांधीवादी आंदोलन अब कमजोर दिखाई देने लगा है खादी ग्रामोद्योग का काम करने वाली रचनात्मक संस्थाएं भी नई बाजार व्यवस्था का शिकार हुई हैइसके बावजूद सर्वोदय व भूदान आंदोलन में भागीदारी करने वाली पीढ़ियां तथा उनकी स्मृति अभी शेष है, लोग उन दिनों तथा तब के माहौल को भावुकता से याद करते मिले| 1950 और 60 के दशक की बालिका शिक्षा तथा महिला सशक्तिकरण के काम में लगी| महिला समाज कर्मियों से मिलना अभूतपूर्व था| विमला बहुगुणा, शशी प्रभा रावत, शोभा बहन, दिशा बहन व राधा दीदी से मिलना, बात करना अविस्मरणीय रहेगाखाड़ी में स्वर्गीय दुलारी बहन से मिलना तो वरदान जैसा था क्योंकि हमारी मुलाकात के आठवें दिन उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया

इसी भांति चिपको आंदोलन के विभिन्न साथियों व कार्यकर्ताओं की यात्रा मे बढ़-चढ़कर भागीदारी ने यात्रा को जीवंत बनायाविभिन्न पर्यावरणीय आंदोलन तथा कार्यों का प्रभाव तथा जानकारी एकदम हासिये मैं दिखाई दीनशा नहीं रोजगार दो’ आंदोलन, कनकटा बैल, 70 व 80 के दशक का छात्र आंदोलन धीरे-धीरे राजनीतिक शोरगुल में भुलाया जाने लगा हैअस्कोट-आराकोट यात्रा को याद करने वाले लोगों से मुलाकात हुईआधुनिक विकास के प्रति लालायित समाज प्रकृति व पर्यावरणीय नुकसान को लेकर चुप्पी साधे हैंटिहरी के पराभव ने आधुनिक विकास के जीत की घोषणा कर दी हैपर्यावरणीय सवालों का आधुनिक मुहावरा हमारे वनवासी समाज की मूल अवधारणाओं तथा भाषा से मेल नहीं खाता दिखा

पहाड़ों में विशालकाय होटल निर्माण, जमीनों की खरीद-फरोख्त लगातार बढ़ रही हैस्थानीय समाज इस सवाल पर दो हिस्सों में बटा दिखता हैसख्त भू-कानून की मांग भी सबसे ज्यादा इन्हीं इलाकों से आ रही हैप्राकृतिक संसाधनों को लेकर संघर्ष भी यहां तीखा होता जा रहा हैयह कमोबेश पूरे उत्तराखंड में सबसे बेहतर आबोहवा वाली जगह पर दिखाई दे रहा है

पूरे पहाड़ में लगातार कूड़े के पहाड़ खड़े होते जा रहे हैंप्लास्टिक कचरा उत्तराखंड के हर कोने तक पहुंच रहा है, लगातार बढ़ता जा रहा है, गांव के रास्तों के साथ-साथ कचरा भी चलता रहता है, हर नगर-निगम, नगर-पालिका व नगर-पंचायत में सुंदर गीत गाते हुए कचरा गाड़ी चलती रहती है, लेकिन कचरे का ढेर बिल्कुल शहर के नजदीक बढ़ता जा रहा हैइस कचरे से निपटने में सरकारे, नगर- निकाय व समाज विफल दिखता है

उत्तराखंड में लगातार नए कस्बे बढ़ते व फैलते जा रहे हैंपिछले दो-तीन दशकों में सैकड़ों नए कस्बे तेजी से फले फूले हैंयहां नई बाजार नीति, स्कूल, बैंक सुविधाएं, बारातघर, निजी अस्पताल खुले हैं गांव में रहने वाली बड़ी आबादी गांव से यहां स्थापित हो गई हैइन कस्बों का अनियोजित निर्माण व अशुरक्षित भविष्य के लिए खतरा है दो तीन दशकों पहले तक पहाड़ों का उत्पादक मानव श्रम कस्बों व शहरों में आकर लगातार अनउत्पादक श्रम में तब्दील हो रहा है

पहाड़ के गांव में होने वाला लघु-निर्माण (सार्वजनिक निर्माण) जैसे पंचायतघर, यात्री विश्राम गृह, सार्वजनिक शौचालय, पटवारी चौकी, एनम सेंटर, प्राथमिक विद्यालय, लघु नैहरे, व पुल बहुत ही घटिया स्तर के निर्माण सामग्री से बनाए जा रहे हैंइन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर ना हो तो चर्चा हो रही है ना इसका विरोध हो रहा है इस भ्रष्टाचार में संलिप्त लोग सब हमारे आसपास के लोग हैंएक आश्चर्यजनक चुप्पी इस भ्रष्टाचार को लेकर हमें दिखती है

राज्य निर्माण के 22 साल पूरे होने के पश्चात भी सार्वजनिक सुविधाओं की आपूर्ति या बहाली बहुत निराशाजनक है, लोग यह कहते मिलते हैं कि इससे बेहतर तो उत्तर प्रदेश में थे, सरकारी विभागों की लापरवाही चरम पर हैकृषि विभाग व उद्यान विभाग जिसकी नीतियां लागू कर रही हैं उससे हमारी परंपरागत कृषि व उद्यान को जबरदस्त नुकसान पहुंच रहा हैलगातार बढ़ता बंजर, सरकती नदियां, नाले, घोर, जलते जंगल फैलता चीड़ भी हमारी पर्यावरणीय महामारी की ओर इशारा कर रहा हैलगभग सभी इलाकों में लोगों की स्वीकारोक्ति है कि पेयजल व सिंचाई योजनाओं ने हमारी छोटी नदियों, गधरो व तालों को लगभग समाप्त कर दिया हैनदियों में मिलने वाली मछलियां तथा अन्य जलीय जीव लगातार घटते जा रहे हैं

इन सब निराशाओ के साथ-साथ बेरोजगारी व पलायन हमारी समस्त संभावनाओं के द्वारा बंद कर दे रहे हैंजिन युवाओं को पहाड़ के जैसे श्रमकारी जीवन व सरल व सुगम बनाना था वो युवा रोजगार खासकर नौकरियों के लिए पहाड़ से लगातार मैदानों या महानगरों की ओर जा रहे हैं

धार्मिक व जातिगत भेदभाव भी खतरनाक स्तर तक पहुंच गया हैजिन गॉवो व लोगों ने किसी अन्य धार्मिक समूह को देखा तक नहीं है, वह भी टेलीविजन व फोन से अपनी राय बना रहे हैंजातिगत भेदभाव शहरों बाजारों व कस्बों में कम हुआ है, छुआछूत घटा है, लेकिन गांव में भेदभाव जस का तस बना हुआ हैकई बार हिंसक तक हो जा रहा है

सामाजिक मुद्दे आर्थिक मुद्दे पर्यावरणीय मुद्दे
धार्मिक एवं जातीय दुर्भावना का फैलाव स्थानीय अर्थव्यवस्था का कमजोर होना जल, जंगल, जमीन  के उपर स्थानीय लोगों का अधिकार नही रहा
लोक चेतना जागरण का अभाव आर्थिक विषमता में बढाव ग्लेसियर, नदियां, धारे, नौले सब सूख रहे हैं
उच्च शिक्षा के अवसरों में बृधि परन्तु में गुणवत्ता में गिरावट आजिविका के अभाव के कारण बेरोजगारी बांधों और विकास परियोजनाओं के कारण, नदियों का प्रवाह न्यूनतम हो गया
युवाओं के लिये व्यवसायिक  प्रशिक्षण का अभाव महंगाई के कारण कमजोर वर्गो में अधिक भार वन पंचायत प्रणाली होने के बावजूद स्थानीय लोगों को लाभ नही
स्वास्थ्य एवं सफाई – चिकित्सा एवं नागर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी कृषि उत्पादन एवं लाभ की कमी जलवायु परिवर्तन के कारण भीषण गर्मी, सर्दी एवं वर्षा
पुरुषों में शराब की लत उत्पादित माल के लिये बाजार की कमी प्राकृतिक आपदा – भूस्खलन, अचानक बाढ़
महिलाओं के उपर घरेलू काम का बोझ एवं आर्थिक चुनौतियां बढी हैं आय के स्थानीय श्रोतों की कमी भूकंप आवृति एवं तीव्रता बढी  है
पलायन एवं विस्थापन सरकारी योजनांए – नरेगा इत्यादि से सीमित लाभ प्लास्टिक कचरे की बढोत्तरी
आपसी संवाद और सामुहिक कार्यों की परंपरा में गिरावट स्थानीय संसाधनों का दोहन परन्तु स्थानीय लाभ नही अनियंत्रित पर्यटन के कारण, प्राकृतिक सौन्दर्य का ह्रास

इन सब निराशाओं के बावजूद कई आशा जनक बातें भी इस यात्रा के दौरान देखने को मिली, पहाड़ की महिलाएं स्वयं सहायता समूह के माध्यम से संगठित हो रहे हैंरोजगार के नई पहल कर रहे हैं, युवाओं ने कम निवेश में किए जा सकने वाले कारोबार शुरू किए हैंबालिका शिक्षा बेहतर दिखाई देती है, सरकारी स्कूल उनके शिक्षक नवाचार व रचनात्मकता  के साथ लगातार बेहतर होते जा रहे, सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या भी लगातार बढ़ रही है

सदभावना यात्रा समापन गोष्ठी, देहरादून 20 जून 2022

 

प्रातः10:00 बजे सदभावना यात्रा दल व प्रदेश भर से आए साथी गांधी पार्क देहरादून में एकत्र हुए, वहां से जनगीतों तथा नारों के साथ समस्त यात्रा दल प्रेस क्लब देहरादून पंहुचावहां पहुंचकर यह एक गोष्ठी में बदल गया

जनगीतों के साथ दिन के प्रथम सत्र की शुरुआत हुई, पहले सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह व वरिष्ठ गांधीवादी विचारक बीजू नेगी ने किया तथा सभा का संचालन वरिष्ठ आंदोलनकारी तथा महिला मंच की संयोजिका कमला पंत ने किया

इसके पश्चात यात्रा दल में शामिल रहे उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष इस्लाम हुसैन, गोपाल भाई व भुवन पाठक ने अपने यात्रा अनुभवों को साझा किया8 मई 2022 को हल्द्वानी से शुरू होकर तकरीबन 4500 किलोमीटर यात्रा पूरी करने के पश्चात 15 जून को यात्रा देहरादून पहुंची20 जून तक लगातार देहरादून शहर के आसपास सदभावना कार्यक्रम आयोजित होते रहे, जिसमें बैठकों के अलावा खारा खेत की यात्रा तथा देहरादून में अलग-अलग स्थानों पर सदभावना दौड़ों का आयोजन किया गया

इन समस्त कार्यक्रमों में लगभग 200 से अधिक बैठके, गोष्ठियों, जनसभाएं, नुक्कड़ सभाएं, संस्कृतिक रैलियों का आयोजन किया गयासदभावना  यात्रा के दौरान प्रत्यक्ष रूप से 10000 लोगों से संवाद स्थापित किया गया तथा 800 से अधिक साथियों ने विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन में सहायता कीउन सभी साथियों के योगदान को याद करते हुए उनको धन्यवाद ज्ञापित किया

चर्चा की शुरूआत यात्रा दल का नेतृत्व कर रहे इस्लाम हुसैन ने कियाउन्होंने कहा कि तमाम तरह की शंकाओं व डर के बावजूद यात्रा सफल रही, यात्रा के दौरान हमने यात्रा के उद्देश्य को बेहिचक निडरता से लोगों के सामने रखाभाईचारा व कौमी एकता के गीत व नारे लगाएलोगों ने इस पहल का खुल कर स्वागत किया

उसमें शामिल हुए गोपाल भाई ने कहा कि यात्रा के दौरान एक बात समझ में आई कि समाज का खुद से अपनी समस्याओं के समाधान करने की प्रवृत्ति पहले की बनिस्बत कमजोर होती जा रही हैंखासकर जिस भी काम का जिम्मा सरकार ने लिया, उसको लेकर एक खास तरह की बेचैनी और उदासीनता समाज में दिखाई देती हैजिन त्योहारों व उत्सव को हम हर्ष व ख़ुशी व्यक्त करने के लिए मनाते थे, अब वह त्यौहार गुस्सा और घृणा व्यक्त करने के माध्यम बन गए हैंऔर जो धर्म राजसत्ता से टकरा कर पैदा हुए थे, वही धर्म अब राजसत्ता की चाटुकारिता में व्यस्त हो गए हैं

यात्रा दल संयोजक भुवन पाठक ने उन समस्याओं की ओर इशारा किया जो आज भी समाज में दिखाई देते हैं ऐसा लगता है कि समाज में आपसी संवाद व संपर्क घटा हैधर्मों-जातियों-भौगोलिक-बोली-भाषा के आधार पर छोटे-छोटे समूह बन गए हैं, जिनका आपसी संपर्क व संवाद लगातार घट रहा हैहम बिना एक दूसरे का सच जाने ही विरोध करने लगे हैंराज्य निर्माण के 22 वर्षों बाद भी प्रदेश के गांव बदहाल स्थिति में हैं, तथा गांव को लेकर सटीक व व्यवहारिक योजनाओं का अभाव है

चर्चा में पीसी तिवारी ने यात्रा को प्रासंगिक बताते हुए देश में जिस तरह से विद्वेष हिंसा व नफरत को लेकर आम सहमति बनाने का प्रयास किया जा रहा है, उसके खिलाफ उत्तराखंड में हम सब को एकजुटता से आगे बढ़ने पर बल दिया, और कहा जातीय धार्मिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए दीर्घकालीन योजनाओं पर काम किया जाना चाहिए

अगले वक्ता विजय महाजन ने यात्रा के मूल विचार व राजीव गांधी फाउंडेशन की भूमिका पर बात की तथा सदभावना  से आगे बढ़कर समाधान तक कैसे पहुंचे यह महत्व का प्रश्न है

अध्यक्षीय भाषण में बीजू नेगी वह राजीव लोचन शाह जी ने पुनः यात्रा के अनुभवों का भविष्य की रणनीति के लिए महत्वपूर्ण बताया तथा इस क्रम को लगातार जारी रखने की अनिवार्यता पर बल दिया

भोजन के पश्चात द्वितीय सत्र प्रारंभ हुआ जिसमें सभी साथियों ने अपना परिचय तथा वैचारिक पक्ष रखाइस सत्र की अध्यक्षता कमला पंत एवं पीसी तिवारी ने की, तथा संचालक भुवन पाठक ने कियाचर्चा की शुरुआत में पीसी तिवारी ने आज के माहौल में सक्षम राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया

विजय प्रताप ने राष्ट्रीय माहौल पर बात करते हुए कहा कि समाज में विभिन्न धर्मों जाति समूहों के बीच आपसी संवाद व संबंधों पर चौतरफा हमला हो रहा हैआज के माहौल में आपसी संवाद लगातार बना रहे यह आवश्यक हैसम्प्रदियकता के बढ़ते जहर को रोकने के लिए सामूहिक रणनीति वह छोटे-छोटे सार्थक प्रयासों पर बल दिया

कमला पंत ने बार-बार कहा कि इस पूरी प्रक्रिया को चौपाल या खुले मंच के तौर पर रहना चाहिए सभी कार्यक्रमों की स्वायत्तता बनी रहे तथा सामूहिक तौर पर सदभावना  संवाद को चलाए रखना होगा

21 जून को देहरादून में विभिन्न जन संगठनों, संस्थाओं, आंदोलन समूहों ने मिलकर आगे के कार्यक्रमों पर विस्तार से चर्चा की 

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