उत्तराखंड के समावेशी और सतत विकास हेतु नई रणनीति पर आधारित यह रिपोर्ट राज्य के पर्यावरण, समाज एवं अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति का विश्लेषण प्रस्तुत करती है और विकास के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोण सुझाती है। रिपोर्ट दर्शाती है कि पारंपरिक विकास मॉडल के बावजूद उत्तराखंड तीन प्रमुख संकटों—पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक—का सामना कर रहा है। तेजी से घटते जल-संसाधन, वनों की गुणवत्ता में गिरावट, आक्रामक चीड़ प्रजाति का विस्तार, मिट्टी की उर्वरता में कमी, और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित पारिस्थितिकी तंत्र चिंता का विषय हैं। सामाजिक स्तर पर, क्षेत्रीय एवं लैंगिक असमानता, खराब स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा में गुणवत्ता की समस्याएँ, और ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन जैसी चुनौतियाँ उभर रही हैं। आर्थिक रूप से, सेवा और औद्योगिक क्षेत्रों में विकास हुआ है, लेकिन कृषि पर निर्भर रोजगार घटा है; बेरोजगारी और महिला श्रम दर भी कम है।
रिपोर्ट में “NEW रणनीति” (Nature regeneration, Enabling social development, Well-th creation) का सुझाव दिया गया है। इसमें जल, जंगल, जमीन और जलवायु के पुनरुत्थान, स्वास्थ्य एवं शिक्षा में सुधार, कौशल विकास, सामाजिक संस्थाओं/समूहों को सशक्त बनाना और स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा देना शामिल है। यह रणनीति तात्कालिक और दीर्घकालिक निवेश के साथ पर्यावरणीय पुनर्जीवन, मानव विकास, और समावेशी आर्थिक समृद्धि को प्रमुखता देती है।
पाँच वर्षों में ₹1,46,344 करोड़ के निवेश की सिफारिश की गई है, जिसमें करीब एक चौथाई हिस्सा प्रकृति और सामाजिक विकास के लिए है, शेष कृषि एवं गैर-कृषि उद्यमों में। इससे वर्ष में ₹28,541 करोड़ की अतिरिक्त GSDP, 5.15 लाख नए रोजगार, बेहतर जल, वन, भूमि संरक्षण, और सामाजिक समरसता की प्राप्ति का अनुमान है। रिपोर्ट, पंच स्तरों पर—व्यक्ति, समूह, पंचायत/नगरपालिका, सरकार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग—पर संयुक्त प्रयास का आह्वान करती है, जिससे उत्तराखंड की समावेशी और सतत खुशहाली सुनिश्चित हो सके।
उत्तराखण्ड के समावेशी और सतत विकास के लिए नई रणनीति
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