हेलंग आंदोलन: जल-जंगल-जमीन-जीविका के अंतर्सबंधों के लिए लड़ता-जूझता पहाड़

उत्तराखंड के वन संसाधनों पर नियंत्रण और स्थानीय अधिकारों के संघर्ष का इतिहास पुराना है। हेलंग गांव की महिलाओं ने वन भूमि पर पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए THDC का विरोध किया। 15 जुलाई 2022 की घटना ने जल, जंगल और जमीन पर स्थानीय समुदायों के हक को लेकर एक नया जनआंदोलन खड़ा किया।

ब्रिटिश राज के दौरान से ही उत्तराखण्ड का समाज जंगल और आजीविका के अंर्तसंबन्धों को बचाने और मजबूत करने के लिए आवाज बुलंद करता आ रहा है। अंग्रेजों द्वारा उनीसवीं शताब्दी से ही वनों पर नियंत्रण बढा दिया़ गया था, लेकिन 1902 में औपनिवेशिक सरकार ने वनों का वर्गीकरण कर वनों से स्थानीय लोगों के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकार खत्म कर दिये गये थे। इस आदेश के बेहतर क्रियान्वयन के लिए वर्ष 1911 से 1917 तक वन बंदोबस्त किया गया। इस निर्णय के प्रतिकार में पूरे कुमायूं क्षेत्र में बड़ा जन.आंदोलन हुआ। इसी के परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार को फॉरेस्ट ग्रीवेंस कमेटी का गठन करना पड़ा और इस कमेटी की संस्तुति पर ही वन पंचायत व्यवस्था को लागू करना पड़ा। इसके अलावा टिहरी गढ़वाल तथा उत्तरकाशी में भी समय-समय पर टिहरी रियासत तथा औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ वनों के दुरूपयोग तथा स्थानीय लोगों के हक-हकूकों के लिए बुलंद आवाजें उठती रहीं। 1970 के दशक में एक बार पूरा पर्वतीय क्षेत्र तब चर्चा में आया जब स्थानीय पर्यावरण और आजीविका की कीमत पर वनों का व्यापारिक कटान का भारी विरोध हुआ। इस विरोध को चिपको आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा छीनो-झपटो, मैती आंदालन तथा रक्षा सूत्र जैसे तमाम आंदोलनों की जननी यह उत्तराखण्ड की भूमि रही है।

पिछले कुछ दशकों में बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट जैसे जल विघुत परियोजना, रोड़, बिजली लाईन आदि के कारण वनों का बड़ी मात्रा में कटान एवं भू-उपयोग बदला गया है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाईट पर दर्ज आंकणों के हिसाब से अब तक वन संरक्षण अधिनियम के तहत् पूरे राज्य मंे 67,748.74 है0 वन भूमि गैर वन उपयोग के लिए हस्तांतरित की जा चुकी है। बड़े स्तर पर हुए इन वन भूमि हस्तांतरण ने कई गांवों के वनों पर निर्भरता को बदला है। कई क्षेत्रों में समय-समय पर प्रोजेक्ट कार्यदायी ऐजेंसियों और ग्रामीणों के बीच वनों पर अधिकार और उसके उपयोग के लिए वाद-विवाद होता रहता है। अमूमन प्रदेश में हर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के आस-पास के लोग वनों को लेकर प्रोजेक्ट कार्यदायी ऐजेंसियों से मतभेद रखते हैं। हालांकि अधिकतर विरोध का दायरा बहुत छोटा होता है और गांव से बाहर के लोग इनमें नहीं जुड़ पाते हैं। ऐसा ही एक विरोध चमोली जनपद के हेलंग गांव में भी था। इस गांव की महिलायें और विष्णुगाड़ जल-विघुत परियोजना की कार्यदायी संस्था टिहरी हाईड्रो डेवलेपमेंट कॉपोरेशन के बीच गांव के समीप पंचायती वन के उपयोग को लेकर विवाद था। यह वन भूमि मूल रूप से वन पंचायत की थी] जिसे प्रोजेक्ट कार्यदायी ऐजेंसी ने अपने मलवे के निपटान के लिए अधिग्रहित किया। गांव वालों का कहना था कि इस वन भूमि से वे पीढ़यों से अपने पशुओं के लिए चारा प्राप्त करते हैं, और वे किसी भी हालात में इस वन भूमि का दूसरा उपयोग नहीं होने देंगे।

15 जुलाई 2022 को हेलंग गांव की महिलाओं और टिहरी हाईड्रो डेवलेपमेंट कॉपोरेशन के बीच चली आ रही खींच-तान ने नया मोड़ लिया जब कार्यदायी एजेंसी के निर्देश पर सी0आई0एस0एफ0 के कुछ जवानों ने हेलंग की तीन महिलाओं को विवादित वन भूमि से चारा घास काटने के कारण हिरासत में ले लिया। यह घटना उत्तराखण्ड में पर्यावरण के साथ सह-अस्तित्व की भवना को प्रदर्शित करने वाले लोक उत्सव हरेला के ठीक एक दिन पहले हुआ। वरिष्ट पत्रकार राजीव लोचन शाह इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं-

हरेले से एक दिन पूर्व, 15 जुलाई को जोशीमठजनपद चमोली के निकट हेलंग गाँव की मन्दोदरी देवी और उनकी तीन साथी जंगल से घास लेकर घर लौट रहे थे। पहाड़ का यह एक सामान्य दृश्य है। मगर उस रोज मोटर सड़क पर उन्हें उत्तराखंड पुलिस और विष्णुगाड़ पीपलकोटी परियोजना में तैनात औद्योगिक सुरक्षा बल के लगभग एक दर्जन जवानों ने घेर लिया। उनके साथ बदसलूकी की गई, उनकी घास छीन ली गई और उन्हें घण्टों थाने में बिठाये रखा गया। उनसे पानी के लिये भी नहीं पूछा गया। इन घसियारियों (घास काटने वाली महिलायें) के साथ डेढ़दो साल की एक बच्ची भी थी। बाद में शराब पीकर शान्ति भंग करने के आरोप में इन लोगों का चालान कर उन्हें छोड़ दिया गया।

घटना की पृष्ठभूमि यह है कि विष्णुगाड़ पीपलकोटी परियोजना बनाने वाली कम्पनी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की नजर हेलंग के चारागाह पर है, जहाँ वह अपनी निर्माणाधीन सुरंग का मलबा फेंकना चाहती है। इसके लिये उसने चमोली के जिला प्रशासन को अपने प्रभाव में लेकर यह दिखाने की कोशिश की है कि वहाँ पर खेल का मैदान बनाने के लिये यह मलबा डाला जा रहा है। मन्दोदरी देवी और हेलंग की महिलायें इस बात का विरोध कर रही हैं। नियमानुसार भी गौचर और पनघट की जमीनों पर किसी तरह का विकास कार्य नहीं किया जा सकता।

उत्तराखंड में घट रही ऐसी अन्य अनेक घटनाओं की तरह यह घटना भी आयी गयी हो जाती। लगातार विस्तार पा रहे मुख्यधारा के मीडिया, जिसमें अब जगहजगह कुकुरमुत्तों की तरह उग आये ब्लॉग भी शामिल हैं, का ध्यान सरकारी विज्ञप्तियों पर ही केन्द्रित रहता है, जनता के दुःखकष्टों पर नहीं। मगर सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें उनका घास का गठ्ठर छीनने की कोशिश करते पुलिस वालों से बहस करती मन्दोदरी देवी और उनके साथ की एक रोती हुई घसियारिन का दृश्य था। यह वीडियो जहाँजहाँ पहुँचा, संवेदनशील लोगों में गुस्से की लहर फैल गई।

 हेलंग एकजुटता मंच

सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक छोटे से वीडियो ने संवेदनशील लोगों को झकझोरा, कई लोगों का मानना है कि हेलंग की यह घटना उत्तराखण्ड की अस्मिता पर एक प्रहार है। जंगलों से चारे के लिए घास तथा ईंधन के लिए लकड़ियां लाना पहाड़ की जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है। इन कामों में खासतौर पर महिलायें शामिल होती हैं। यही कारण है कि नवम्बर 2021 में उत्तराखण्ड सरकार ने घसियारी कल्याण योजना का शुभारंभ किया था। इस योजना का उद्घाटन खुद केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने किया था। पिछले कुछ वर्षों में भी कई घटनायें घटित हुई लेकिन उन घटनाओं का प्रतिकार करने के लिए सामुहिक और प्रदेश स्तरीय दबाव नहीं बन पाया। लेकिन यह घटना हाल ही में सम्पादित हुई 45 दिवसीय उत्तराखण्ड राष्ट्रीय सद्भावना यात्रा के तुरंत बाद घटी थी। इस यात्रा में प्रदेश के बहुत सामाजिक और पर्यावरीणीय कार्यकर्ताओं, विचारकों और संगठनों ने हिस्सा लिया था। इस यात्रा के दौरान उत्तराखण्ड के लगभग सभी जनपदों से होते हुए तकरीबन 4500 किमी का रास्ता तय किया गया। 200 से अधिक छोटी-बड़ी बैठकें और लगभग 10 हजार लोगों से सीधा संपर्क साधा गाया था। यात्रा में उत्तराखण्ड के स्थानीय मुद्दों पर चर्चा की गई। इस यात्रा में राज्य के तमाम सामाजिक एवं पर्यावरणीय कार्यकताओं, विचारकों और नेताओं ने खुल कर हिस्सा लिया। 8 मई से 21 जून 2022 तक चली इस यात्रा के अंत में प्रसपर मानवीय सद्भावना तथा प्रकृति और मानव के बीच सद्भावना के विचार को जीवंत रखने के लिए एक सद्भावना कार्य संचालन समिति का गठन किया गया था।

15 जुलाई 2022 को हेलंग में हुई घटना का उत्तराखण्ड सद्भावना यात्रा से जुड़े लोगों ने प्रतिकार तो किया ही लेकिन उसे व्यापक रूप देने का भी निर्णय लिया गया। इस घटना के ठीक 7 दिन बाद 22 जुलाई 2022 को उत्तराखण्ड सद्भावना संचालन समिति ने एक बैठक आयोजित की। इस बैठक में तमाम अन्य सामाजिक कार्यकताओं को भी आमंत्रित किया गया। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि मंदोधरी देवी तथा उसके दो साथियों के साथ हुई बद्सलूकी के विरोध में 24 जुलाई 2022 को हेलंग कूच का आह्वाहन किया जाय। इस बैठक में लिये गये अन्य निर्णय निम्नलिखित हैं।

  1. हेलंग की घटना पर तथा वहाँ के संघर्ष के साथ एकजुटता का संकल्प दोहराया गया
  2. इस पूरे प्रयास को सामुहिक नेत्तृत्व में पूरा करने का संकल्प दोहराया गया, तथा इसे हेलंग एकजुटता मंच कहा जायेगा
  3. हेलंग एकजुटता मंच पूर्णतः शांति और अनुशासन के साथ हेलंग पहुँच कर स्थानीय संघर्ष को अपना समर्थन देगा तथा उस संघर्ष के साथ एकजुटता व्यक्त करेगा यदि पुलिस या प्रसाशन द्वारा रास्ते में रोका गया तो शांति पूर्ण तरीके से शोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कहेंगे।
  4. भविष्य के कार्यक्रम संबंधित घोषणा मंच से करने के बजाय कार्यक्रम समाप्ति के बाद प्रेस के माध्यम से कहा जायेगा, भविष्य के कार्यक्रम के लिए सीनियर साथी प्रदेश भर में साथियों के साथ आमराय बनाने की कोशिश करेंगे
  5. जो साथी व संगठन हेलंग नहीं पहुंच पा रहे है वो अपनी अपनी जगह से हेलंग के समर्थन में अपनी अपनी जगह पर कार्यक्रम करेंगे, इसके तहत ज्ञापन देना, प्रदर्शन एंव शोशल मीडिया संबंधित कार्यक्रम हो सकते हैं

हेलंग कूच

24 अगस्त को प्रदेश भर से लोग हेलंग पहुँचे। उन्होंने वहाँ जुलूस निकाला और सभा की। सभा को मन्दोदरी देवी ने भी सम्बोधित किया। उनका आत्मविश्वास देखने लायक था। सभा में आसपास के इलाके की अनेक महिला जन प्रतिनिधि भी शामिल थीं। हेलंग में ही सरकार से निम्नलिखित माँग की गई कि

  1. महिलाओं से घास छीनने, उन्हें डेढ़-दो साल की बच्ची सहित हिरासत में रखने वाले CISF व पुलिस कर्मियों को निलम्बित कर उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाही की जाये।
  2. उत्पीड़ित महिलाओं के खिलाफ अभियान चलाने वाले चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना को उनके पद से हटाया जाये तथा उनके पूर्वाग्रह को देखते हुए उन्हें भविष्य में किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति न दी जाये।
  3. वन पंचायत नियमावली तथा वनाधिकार कानून का उल्लंघन कर दी गई वन पंचायत की गैरकानूनी स्वीकृति को रद्द किया जाये और इसके आधार पर पेड़ काटने वालों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाही की जाये।
  4. टीएचडीसी के विरुद्ध नदी में मलबा डालने और पेड़ काटने के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर वैधानिक कार्रवाही की जाये। टीएचडीसी व अन्य परियोजना निर्माता कम्पनियों के कामों की जनता की भागीदारी के साथ अनुश्रवण की व्यवस्था की जाये।
  5. हेलंग प्रकरण की उच्च न्यायालय के किसी सेवारत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जाँच करवायी जाये।

गांधीवादी एक्टिविस्ट और विचारक भुवन पाठक लिखते हैं कि “हेलंग में आयोजित सभा विविधता और समग्रता का अद्भुत संगम थी। स्थानीय साथियों व समुदाय ने कोई कसर नहीं छोड़ी तो आन्दोलन के समर्थन में दिल्ली, रामनगर, देहरादून, उधमसिंह नगर, भवाली, रामगढ़, अल्मोड़ा, बेरीनाग, बागेश्वर, गरूड़, द्वाराहाट, सल्ट, गैरसैण,  धूमाकोट, श्रीनगर, गुप्त काशी समेत चमोली जनपद के नेता, कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। स्थानीय महिला मंगल दलों की उपस्थिति उत्साह जनक थी। महिलाओं ने दमदार तरीके से जल, जंगल और जमीन के साथ अपने रिश्ते की पैरवी की और कंपनी और सरकारी दमन को ललकार लगायी। इसके अलावा पूरे प्रदेश मे अल्मोड़ा, देहरादून, रामनगर, नैनीताल व पिथौरागढ में साथियों ने अपने अपने ढ़ग से एकजुटता और समर्थन का प्रदर्शन किया। इस मायने में यह एकजुटता बहुत महत्वपूर्ण रही सभी साथियों को अभिनंदन और आने वाले दिनों के कढ़े संघर्ष की शुभकामनायें”।

मंच से जुड़े लोग जो इस दिन हेलंग नहीं पहंुच पाये उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में धरना-प्रदर्शन आदि  आयोजित किया। देहरादून के गांधी पार्क में राज्यभर के दर्जनों सामाजिक संगठनों ने विरोध-प्रर्दशन किया गया। इस प्रर्दशन में जन विरोधी भू-कानूनों तथा विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों के कटान का भी प्रतिकार किया गया।

प्रदेश व्यापी प्रदर्शन

22 जुलाई 2022 को हेलंग में आयोजित सफल बैठक और विरोध के बाद हेलंग एकजुटता मंच के सदस्यों ने तय किया कि यह घटना उत्तराखण्ड की अस्मिता और सम्मान के विरूद्ध है इसलिए प्रदेश के अलग-अलग स्थानों से भी इसका प्रतिकार कर सरकार को ज्ञापन सौंपा जाना चाहिए। इसी उद्देश्य के साथ तय हुआ कि 1 अगस्त 2022 को मंच से जुड़े सभी लोग अपने-अपने क्षेत्रों में जिला मुख्यालय, मंडल मुख्यालय, तहसील आदि पर विरोध दर्ज कर सरकार से हेलंग में तय किये गये मांगों पर कार्यवाही करने के लिए ज्ञापन सौंपेंगे। इस बीच सरकार के कुछ अधिकारियों ने 26 जुलाई को हेलंग में मंदोधरी देवी के घर जाकर उनसे बात की।

1 अगस्त को जोशीमठ, कर्णप्रयाग, श्रीनगर गढ़वाल, न्यू टिहरी, उत्तरकाशी, मंसूरी, देहरादून, सतपुली, रामनगर, रूद्रपुर, भवाली, भीमताल, चौखुटा, कोकीलबना, बड़ेत, धूमाकोट, सल्ट, भिकियासैण, अल्मोड़ा, थलीसैंण, गरूड़, बागेश्वर, मुनस्यारी, पिथौरागढ, टनकपुर, चंपावत, थराली,  मिदनापुर दिनेशपुर, नैनीताल जिला मुख्यालय, शामा, बागेश्वर गोपेश्वर, पोखरी, पौढ़ी सहित उत्तराखंड के लगभग पैंतीस स्थानों पर, ग्राम स्तर से लेकर कमिश्नरी स्तर तक, हेलंग एकजुटता मंच  की ओर से धरना-प्रदर्शन किये गये और अधिकारियों को उक्त माँगों को लेकर ज्ञापन दिये गये।  अभी सरकार ने इन माँगों पर ध्यान नहीं दिया है। अलबत्ता मुख्यमंत्री ने इस घटना की जाँच गढ़वाल मंडल के आयुक्त को सौंपी है। 15 जुलाई को हुई घटना में पुलिस ने एक 2 साल की बच्ची को भी महिलाओं के साथ थाने ले जाया गया। हेलंग मंच के सदस्यों ने यह मुद्दा भी मुखरता से उठाया था। इस दौरान महिला आयोग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी हेलंग की घटना कां संज्ञान लिया और चमोली पुलिस अधीक्षक से जवाब मांगा है।

इस दौरान हेलंग एकजुटता मंच के कई सदस्यों ने कई तरीकों से अपनी बात को साझा किया। सोशल मीडिया, डिजिटल मीटिंग्स, वीडियो और फोटोग्राफ के अलावा कलाकारों ने कविताओं और गीतों के माध्यम से भी अपनी आवाज उठाई। मंच के एक सदस्य ने नीचे लिखी एक कविता के माध्यम से महिलाओं और पहाड़ का दर्द उकेरने की कोशिश की।

उस दिन वो लुटी क्या घास ही थी

मजबूर पहाड़ी आस भी थी

जल जंगल छीना, घर भी छीना

फिर भी न तेरी यह प्यास बुझी।

उस दिन जो लुटी क्या घास वो थी

नेता तेरा, अफसर तेरा, पूंजी का यह अस्त्र भी तेरा

झुकी दबी पीठों की पर ही निर्लज्ज तेरी तलवार तनी

उस दिन जो लुटी क्या घास ही थी

रामपुर तिराहे पर वो किसके खूं की धार बही

पापी की गोली बता दुष्ट किसके सीने के पार हुई

किसके हिस्से आई कुर्बानी, दावत किसने हर बार करी

उस दिन वो लुटी क्या घास ही थी

मजबूर पहाड़ी आस भी थी

वाह रे लुटेरे, पहाड़ी को भगाने वाली तूने क्या शातिर चाल चली

निकल पहाड़ी, भाग यहाँ से,

छीन घास तूने माता से तूने अपने दिल की बात कही

उस दिन जो लुटी क्या घास ही थी

मजबूर पहाड़ी आस भी थी

संभलो, जागो, उठ जाओ वरना… तेरी जमीन, लेकर जंगल और पानी संग, दूजे मालिक के पास चली उत्तराखण्ड में महिलाओं के मुद्दों पर संघर्षरत महिला मंच शुरू से ही हेलंग एकजुटता मंच के साथ खड़ा था। महिला मंच ने अलग-अलग स्थानों पर हेलंग की घटना का प्रतिकार किया। इसके अलावा महिला मंच और प्रदेश के अन्य महिला संगठनों ने निर्णय लिया कि वे 9 अगस्त 2022 को भारत छोड़ो दिवस के असवर पर एक बार फिर हेलंग कूच करेंगे। महिला मंच की ओर से जारी बयान में कहा गया कि “हालाँकि महिला मंच इस मुद्दे के साथ शुरू से ही जुड़ा है और महिला मंच का मानना है कि यह मुद्दा सिर्फ THDC के मलबा फेंकने तक ही नहीं है बल्कि महिला अस्मिता से भी जुड़ा है। उत्तराखंड के अंदर ही उत्तराखंड की महिलाओं के साथ इस तरह के अभद्र व्यवहार का महिला मंच पुरज़ोर विरोध करता है”।

महिला मंच के सदस्यों ने माना कि हेलंग की घटना उत्तराखंड की समस्त महिलाओं का अपमान है।  उत्तराखंड की लड़ाई महिलाओं ने जल, जंगल, जमीन पर अपने अधिकारों के लिए लड़ी थी और आज उसी उत्तराखंड में उन्हीं महिलाओं को उनके अधिकारों से बेदखल किया जा रहा है। 9 अगस्त 2022 के लिए महिला मंच ने भू-माफिया उत्तराखण्ड छोड़ो के नारे के साथ हेलंग कूच करने को आह्वाहन किया। 9 अगस्त 2022 के प्रदर्शन से पहले महिला मंच तथा हेलंग एकजुटता मंच ने नीचे दिया गया पर्चा तैयार किया जिसे बृहद स्तर पर वितरित किया गया।


जल जंगल जमीन हमारी नहीं सहेंगे धौंस तुम्हारी।।

साथियों,  15 जुलाई को राज्य के दूरस्थ पहाड़ी हिस्से में एक घसियारी महिला के साथ जो हुआ उसकी एक झलक ने सम्पूर्ण राज्य में आक्रोश की एक लहर पैदा कर दी । एक महिला..  घास लाती हुई .. और पुलिस की  छीना झपटी .! एक महिला जो इस राज्य की बुनियाद में रही है । राज्य आंदोलन की पहली पंक्ति में । जिसने राज्य आंदोलन में सत्ता के दमन को सबसे विभत्स रूप में झेला । एक महिला जो इस पहाड़ को आज भी अपनी पीठ पर उठाए है ।.. घास वही पहाड़ है जिसे महिलाओं के श्रम ने अभी भी बचाए रखा है जिंदा रखा है ।  पुलिस वही पुलिस है जिसके दमन के बीच से राज्य  को जीत कर लाए थे ।

इस दृश्य ने हर आम ओ खास को शहरी ग्रामीण को नौजवान वृद्ध को भीतर से झकझोरा । और इसने लोगों को पुनः राज्य आंदोलन के बुनियादी सवालों को हल करने की लड़ाई को सतह पर ला दिया ।

इसी का परिणाम था कि 15 तारीख को हुई घटना का जो वीडियो 16 को प्रसारित हुआ उसके महज दो दिन बाद 19 को पूरे राज्य में लोगों ने घटना के विरोध में प्रदर्शन किए ज्ञापन दिए और इसके 4 दिन बाद ही 24 जुलाई को  राज्य के तमाम हिस्सों से लोग हेलंग में जुटे । 1 अगस्त को पूरे राज्य में 13 जिलों में 35 स्थानों पर पांच सूत्री मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन व ज्ञापन दिए गए ।

हेलंग की इस घटना से न सिर्फ जल जंगल जमीन के बुनियादी सवालो को  सतह ला दिया है वरन  राज्य आंदोलन की बिखरी हुई शक्तियों को भी एकजुट कर एक मंच पर लाने का काम किया है । अब इस मंच के साथ साथ हम  आप सबकी जिम्मेदारी है कि इन सवालों के हल होने तक इस संघर्ष को जारी रखें । राज्य बनने के बाद सरकारों ने नए नए कानूनों के जरिये उत्तराखण्ड की जमीनों की लूट को आसान किया है । आज हालत यह है कि उत्तराखण्ड के भू कानून का लाभ उठाते हुए कोई भी कितनी भी भूमि खरीद सकता है जिससे उत्तराखण्ड भू माफियाओं की खुली लूट का चारागाह बन गया है । पहले से ही बहुत अल्प कृषि भूमि वाले इस राज्य में कृषि भूमि की इस लूट से भविष्य में यहां के निवासियों के सम्मुख इसका संकट पैदा हो जाएगा ।

72 प्रतिशत वन भूमि वाले इस राज्य में वन कानूनों का शिकंजा इतना कड़ा है कि लोगों के पास अपने ही खेत मे अपने उगाए लगाए पेड़ों पर भी अधिकार नहीं है । अपने आस पास जंगल होते हुए भी लोग लकड़ी के लिए बाहर से आई लकड़ी पर निर्भर हैं अपने जंगलों पर अधिकार की सौ साल पुरानी लड़ाई में अंग्रेजों से लड़ कर जो अधिकार हमने हासिल किए थे आज वे भी गंवा दिए हैं । वन अधिकार कानून 2006 के माध्यम से लोगो के परंपरागत वन हकों को मान्यता देने के बजाय सरकार वन पंचायतों में मिले हकों  को भी हड़पने के लिए आतुर हे।

उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश वनाने के नाम पर हमारे पानी को सरकारों ने पहले ही बड़ी बड़ी कम्पनियों को बेच दिया है । अपनी नदियों पर घाटों पर भी जनता का अधिकार खत्म कर दिया गया है । बहुत सी जगहों पर लोग शवदाह करने के लिए भी कम्पनियों की कृपा पर निर्भर हो गए हैं । इन कम्पनियों से मिलने वाला रोजगार भी नितांत अस्थाई किस्म का है। अपना जल जंगल जमीन गंवा कर,हक अधिकार के बदले, महज कुछ सालों के लिए चंद लोगों को कुछ हजार रुपये में बंधुआ बना कर यह लूट को जायज बनाने का षड्यंत्र के सिवा कुछ नहीं है ।

इसके कारण पहाड़ जगह जगह से कमजोर कर दिए गए हैं । जगह जगह भू धंसाव व भू स्खलन से लोगो के घर मकानों में दरारें आ गयी हैं । यह सब पूरे पहाड़ में  एक बड़े  विस्थापन का कारण बन रहा है । जबकि आपदाओं से ग्रस्त लोग पहले ही वर्षों से विस्थापनो की प्रतीक्षा में हैं ।

अपनी जमीन अपने  जंगल और अपने  पानी पर जनता के बुनियादी अधिकार की जो मांग  उत्तराखण्ड आंदोलन के बाद भी पूरी नहीं हुई वह लड़ाई यह आंदोलन इन बुनियादी सवालों के साथ हल करे इसलिए जरूरी है । हेलंग की घसियारी महिला की लड़ाई महज एक चरागाह बचाने की, महज एक कम्पनी के हाथों अपने हक अधिकार लुटने लूटे जाने की लड़ाई नहीं है इसकी बुनियाद में यही जल जंगल जमीन पर जनता के हक अधिकार के मूल सवाल हैं । इसलिए हेलंग की इस लड़ाई को इसकी मंजिल तक पहुंचना जरूरी है ।

पांच सूत्री तात्कालिक मांगों के साथ इस लड़ाई को पहाड़ के उत्तराखण्ड के जन जन तक ले जाए जाने की जरूरत है । उत्तराखण्ड राज्य के भविष्य व अस्तित्व के लिए यह संघर्ष जरूरी है ।

आइये बेहतर उत्तराखण्ड के लिए..जनता के उत्तराखण्ड के लिए.. महिलाओं के सम्मान के लिए…पहाड़ के अस्तित्व व अस्मिता के लिए..इस संघर्ष को मजबूत करें । शहीदों के सपनो को मंजिल तक पहुंचाने के लिए इस लड़ाई को इसके मुकाम तक ले जाने के लिए एकजुट हों !

9 अगस्त भारत छोड़ो दिवस के अवसर पर

महिलाओं के हेलंग कूच के लिए जारी …

हेलंग एकजुटता मंच

हेलंग एकजुटता मंच द्वारा जल जंगल जमीन पर जनता के अधिकार की लड़ाई के लिए समस्त उत्तराखण्ड में वितरण हेतु जारी …..


राजीव लोचन शाह इस पूरे घटनाक्रम का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि “पचास साल पहले गौरादेवी ने अपनी साथियों के साथ रेणी गाँव में चिपको आन्दोलन का बिगुल फँूका था। गौरादेवी को अब देश का बच्चा-बच्चा जानता है। हेलंग रेणी से बहुत दूर नहीं है। आज हेलंग से मन्देादरी देवी और उनकी साथियों ने कम्पनी राज और माफिया राज के खिलाफ शंखनाद किया है। उत्तराखंड के लोग धीरे-धीरे उनके साथ जुट रहे हैं। चिपको आन्दोलन का नया दौर शुरू हो रहा है”। हेलंग में 15 जुलाई 2022 को कुछ महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी के प्रतिकार को व्यापक समर्थन मिला। प्रदेश भर के सामाजिक एवं पर्यावरणीय नेताओं, कार्यकर्ताओं और विचारकों ने इस अभियान के जरिये उत्तराखण्ड की अस्मिता का प्रश्न खड़ा किया। इस मंच से जुड़े लोगों और उनके द्वारा लगभग एक माह से अधिक समय में बार-बार पर्वतीय जीवन और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व को केन्द्र में रखा। बार-बार इन लोगों द्वारा संदेश दिया गया कि पहाड़ के जल, जंगल और जमीन पर किसी भी प्रकार का प्रहार सीधा पहाड़ के जन पर प्रहार है।

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