यह रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश में जल, जंगल और भूमि की स्थिति लगातार खराब हो रही है, और यह स्थानीय समुदायों के जीवन और पर्यावरण दोनों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। प्राकृतिक संसाधनों का बेहिसाब दोहन, अव्यवस्थित प्रबंधन, और नीतिगत खामियों के कारण वन क्षेत्र घट रहा है, जल स्रोत सूख रहे हैं, और कृषि भूमि बंजर होती जा रही है। कई प्रयासों के बावजूद, अब तक जो नतीजे आए हैं, वे बहुत उत्साहजनक नहीं हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है। नदियाँ और जलाशय, जो कभी जीवन का आधार थे, अब धीरे-धीरे सूख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और अनियमित वर्षा की वजह से पानी की उपलब्धता में भयंकर असमानता देखी जा रही है। वहीं, कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता लगातार घट रही है क्योंकि अत्यधिक खेती, जल संकट और बंजर होती ज़मीनें स्थिति को और भी खराब कर रही हैं।
वनों के मामले में भी स्थिति चिंताजनक है। राज्य का लगभग 31 प्रतिशत क्षेत्र वन विभाग के अधीन आता है, लेकिन वनावरण की गुणवत्ता लगातार गिर रही है। वनीकरण के प्रयास जरूर हो रहे हैं, लेकिन वे समस्याओं को पूरी तरह से हल नहीं कर पा रहे।
इस रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि यदि हमें इन प्राकृतिक संसाधनों का पुनर्जीवन करना है, तो सिर्फ नीतियाँ बदलने से काम नहीं चलेगा। ज़रूरी है कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए और उनके पारंपरिक ज्ञान और अनुभव का पूरा उपयोग किया जाए। इसके बिना, सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण का सपना अधूरा ही रहेगा।
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प्राकृतिक संपदा का पुर्नर्जीवतीकरण: जल जंगल और जमीन पर एक कार्यशाला
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