महात्मा गांधी और उत्तर प्रदेश का संबंध गहरा और ऐतिहासिक था। यह राज्य स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख केंद्र रहा, जहां उनके विचारों ने समाज को जागरूक किया। प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ, कानपुर और मेरठ जैसे शहरों में उनकी उपस्थिति ने सत्याग्रह, अहिंसा, स्वदेशी और राष्ट्रीय एकता के विचारों को मजबूत किया।
गांधीजी पहली बार 1896 में प्रयागराज आए, जहां उन्होंने प्रवासी भारतीयों के अधिकारों पर चर्चा की। 1902 में वाराणसी में, उन्होंने मंदिरों की गंदगी और धार्मिक आडंबरों की आलोचना करते हुए स्वच्छता और सच्ची आध्यात्मिकता पर जोर दिया।
1915 में हरिद्वार कुंभ मेले में उन्होंने स्वच्छता और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया। 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में, उन्होंने भारतीय अमीरों की विलासिता की आलोचना की और कहा कि स्वराज केवल कर्मों से पाया जा सकता है, न कि दान में।
1919 में रॉलेट सत्याग्रह के दौरान प्रयागराज में उन्होंने सत्याग्रह की ताकत पर जोर दिया और लखनऊ में ब्रिटिश शासन को ‘शैतान की प्रतिमूर्ति’ कहा। 1921 में इलाहाबाद में, उन्होंने अंग्रेजों के शासन की तुलना रावणराज से की और असहयोग आंदोलन को गति दी।
1925-26 में, गांधीजी ने चरखे, ग्रामीण विकास और कौमी एकता को प्राथमिकता दी। लखनऊ (1925) में उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को देश की मजबूती की कुंजी बताया। 1926 में काशी में, उन्होंने चरखे को आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का प्रतीक बताया।
गांधीजी की यात्राओं ने उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी। उनके विचारों ने जनता को संगठित किया, सामाजिक बुराइयों को चुनौती दी और आत्मनिर्भर भारत की नींव रखी।
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गांधीजी और उत्तर प्रदेश
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